मेरी बैस्टी मेरी डायरी# डायरी लेखन प्रतियोगिता -17-Dec-2021
29 दिसम्बर..
रात के आठ बजने को हैं..
अक्टूबर की यादें...
त्यौहारों का मौसम , मन में उमंग उत्साह भर अक्टूबर महीने का स्वागत कर रही थी। मुझे यह महीना काफी पसंद है,गर्मी जा चुकी होती है और ठंड आई नहीं होती! अक्टूबर की शुरुआत ही बहुत अच्छी रही जब पहली तारीख को ही बेटे ने बताया कि उसने जो पहला जेईई का इक्जाम दिया था उसका रिजल्ट आ गया और उसका नाम मैरिट में है... हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था। मध्यप्रदेश .. पर कहां.. एडमिशन 4,5,6 .. अक्टूबर पहली लिस्ट.. तीन को एलौटमेंट लैटर आया भोपाल की राजीव गांधी तकनीकी विश्वविद्यालय... उसी बीच जेठजी की बड़ी बेटी की शादी की बात करने के लिए लड़के वाले का परिवार आने वाला था...अब ऐसे में ये जिनकी पसंद का लड़का है और ये ही इस शादी का सब इंतजाम करवा रहे हैं..अपने बेटों से ज्यादा अपनी भतीजी को मानते हैं..वैसे भी हमने कभी भेद ही नहीं किया किसका बेटा किसकी बेटी... हमारे पांच बच्चे हैं बस यही मानते हैं .. तो ऐसे में बेटे के साथ मुझे ही जाना चाहिए सबका यही निर्णय था... मैं कभी दिल्ली और बिहार अपने गांव के अलावा कहीं नहीं गईं। भोपाल मेरे लिए बिल्कुल अनजानी जगह थी। बहुत ही नया अनुभव रहा मेरा वो सफर। दिल्ली तक तो कई बार प्लेन से गई हूं ..
मन में एक डर तो था ही, एडमिशन अच्छे से हो जाएगा ... दिल्ली एयरपोर्ट पर पांच घंटे रुकने के बाद ही अगली फ्लाइट थी भोपाल की.. पर तब तक मैंने अपने घर पर यानी मम्मी भाई भतीजी दीदी किसी को कुछ नहीं बताया था। भगवान की दया से मैं जिस काम के लिए गई थी बेटे के साथ... अच्छे से हो गया। फिर इन्होंने ईनाम के रूप में मुझे कुछ दिन दिल्ली मम्मी के पास रुकने की इजाजत दे दी।बेटा भी करीब दस दिन साथ रहा फिर उसे यहां रांची में काम था तो वो मुझे छोड़कर आ गया। पहली बार बेटे ने अकेले इतना लंबा सफर तय किया।
2021 यानी इस साल का अक्टूबर महीना काफी यादगार रहा मेरे लिए। सालों बाद मायके में दशहरा दिवाली और भाईदूज मनाया!
भतीजी की साल भर की बेटी जिससे मैं पहली बार मिल रही थी वो मेरे साथ खूब घुल मिल गई।रोज शाम को भतीजी वीडियो कॉल पर उसे दिखाती थी... कितना अजीब रहा होगा ना उस छोटी सी बच्ची के लिए कि मोबाइल में से बुआ नानी निकल आई। मेरे अचानक बिना किसी को बताए आ जाने से भी सब बहुत खुश थे। सालों बाद सवा महीने मायके में रही। सपने में भी नहीं सोचती थी कि अब दिल्ली कभी जा पाऊंगी।मेरी दिल्ली बदल गई है सुना था पर मुझे पहचान ही लिया उन हवाओं ने। हां अब प्रदुषण ज्यादा हो गया है...
हवा के संग रिस्तों में भी।
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कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी